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मधपान - शराबीपन

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मधपान





कुछ
समय पहले एक
 ख़बर आई कि कनाडा ने भांग और गांजे पर से
पाबंदी हटा ली है
| कई अमेरिकी राज्यों में भी नशे के लिए इन
पर पाबंदी नहीं है और कई यूरोपीय देशों में भी पिछले कुछ साल में यह हटा ली गई है
|
धीरे धीरे ऐसे देशों की तादाद बढ़ती जा रही है जहां यह पाबंदी हटाई
गई है
|
















शराब
को सामाजिक नशे के रूप में स्वीकृति:-



लगभग
सौ साल पहले तमाम पश्चिमी देशों में शराब और तंबाकू को छोड़कर बाक़ी नशों पर
पाबंदी लगाई गई थी
| अब सौ साल में पहिया घूम कर वहीं आ गया है | लेकिन
इस इतिहास को खंगालना काफी दिलचस्प हो सकता है
|


सारी दुनिया में शराब को एक सामाजिक
नशे की तरह लगातार स्वीकृति मिल रही है
| जैसे भारतीय समाज में ख़ास कर मध्यमवर्ग में कुछ दशकों पहले तक ही शराब
पीना बहुत आम नहीं था
| लेकिन अब यह एक सामाजिक नशे की तरह
स्वीकृत है
| लोकप्रिय माध्यमों से भी यह पता चलता है |
जैसे कुछ साल पहले तक फ़िल्मों में खलनायक और बुरी औरतेंही शराब पीती थीं | आजकल टीवी पर घरेलू सास बहू सीरियल जो मूल्यों के लिहाज़ से काफी
पुरातनपंथी और दक़ियानूसी होते हैं
  | उनमें भी आदर्श
परिवारों में घर या पार्टियों में शराब पीने के द्रश्य आम होते हैं
| अपने आसपास के समाज में भी यह हम देख सकते हैं |


इसके विपरीत भांग पीने का प्रचलन बहुत
कम हो गया है
| यहां तक कि होली पर भी भांग का सेवन ज्यादा सुनने में नहीं आता | गांजा तो ख़ैर ग़ैरक़ानूनी ही हो गया है | अमूमन अब
गांजे या भांग को अफ़ीम
, हेरोइन, एलएसडी
या एक्स्टेसी जैसे नशों के साथ ही गिनने का रिवाज है
मसलन हम रोज़ शाम को दो पैग शराब पीने वाले को शराबी नहीं कहते, लेकिन गांजे का एक भी कश लगाने वाले को गंजेड़ी कह देते हैं | अब तंबाकू के ख़िलाफ़ भी ज़ोरदार मुहिम चल रही है 
तो सारी ही दुनिया में शराब ही एकमात्र
सामाजिक रूप से मान्य नशा बचा है
|


ऐसा हमेशा नहीं था | भारत में कुछ दशकों
पहले तक सामाजिक रूप से मान्य नशा भांग का होता था जिसे पीने वाले को कोई बुरी
नज़र से नहीं देखता था
| बल्कि कुछ ख़ास मौक़ों पर
मध्यमवर्गीय परिवार की औरतें भी भांग पी लेती थीं
| उच्च वर्ग
या निम्न वर्ग में तो ख़ैर नशों को लेकर पुरुष महिलाओं में बहुत भेद नहीं होता था
|
भारत के  क्षेत्रों के कुछ वर्गों में
अफ़ीम सामाजिक नशा था
| इसी तरह हर समाज के अपने स्वीकृत नशे
थे
| दक्षिण अमेरिका में कोका की पत्तियों को चबाना आम था |
शराब मुख्यत: यूरोप का नशा था | हालांकि बाक़ी
दुनिया में भी अलग अलग क्षेत्रों में शराब पी जाती थी
|


दूसरे नशों के मुक़ाबले शराब को तरजीह
देने की शुरुआत उन्नीसवीं सदी में उपनिवेशवाद के मज़बूत होने के साथ हुई
| इसके पीछे कुछ आर्थिक
कारण थे और कुछ सांस्कृतिक
| चूंकि शराब यूरोपीय लोगों का
अपना नशा था इसलिए वे इसे श्रेष्ठ मानते थे और उन्होंने जिन देशों को गुलाम बनाया
उनके समाज और संस्कृति के साथ उनके नशों को भी घटिया और फूहड़ साबित करने की कोशिश
की
| जैसे भारत में अंग्रेज़ों में यह विचार प्रचलित था कि
भांग के नशे के बहुत घातक परिणाम होते हैं और इससे लोग पागल हो सकते हैं
| सन 1894 में अंग्रेज़ सरकार ने डब्ल्यू मैकवर्थ यंग
के नेतृत्व में भांग के घातक नतीजों का अध्ययन करने के लिए एक आयोग बनाया जिसका
नाम इंडियन हेंप ड्रग कमीशन था
| इस आयोग ने सारे भारत का
दौरा करके अध्ययन किया और तीन हज़ार से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी
|


सरकार को शायद यही उम्मीद थी कि
रिपोर्ट से उसके विचारों की पुष्टि होगी और वह इन नशों पर रोक लगा देगी
| लेकिन कमीशन ने बहुत
ईमानदारी से जांच की थी
| उसके निष्कर्षों के मुताबिक भांग
के सामान्य सेवन से कोई नुक़सान नहीं होता बल्कि उसके फ़ायदे भी हैं
| उसके अत्यधिक सेवन से कभी कभार कुछ नुक़सान हो सकते हैं | इस रिपोर्ट के बावजूद अंग्रेज़ सरकार ने इन नशों के प्रचलन तो कम करने और
उन्हें आपराधिक साबित करने की पूरी पूरी कोशिश की
|


बाक़ी दुनिया के नशों को अपराध की
श्रेणी में डालने के पीछे पश्चिम के श्रेष्ठताबोध के अलावा भी कुछ कारण थे
| उन्नीसवीं सदी में
विज्ञान की काफी तरक़्क़ी हो रही थी और उसकी वजह से नशे पैदा करने वाली वनस्पतियों
से रासायनिक तत्व निकालने में कामयाबी मिल रही थी
| जैसे
दक्षिण अमेरिका में कोका की पत्तियां चबाने का रिवाज था जो अपेक्षाकृत हल्का नशा
था
| लेकिन उन्नीसवीं सदी के मध्य में कोका से कोकीन निकालने
में कामयाबी मिलने के बाद स्थिति बदल गई
| इसी तरह अफ़ीम से
मॉर्फीन और हेरोइन निकालने से स्थिति बदली
|


बीसवीं सदी की शुरुआत तक अन्य नशे भी
पश्चिम में मान्य थे
| लेकिन इस बीच शराब की बड़ी-बड़ी कंपनियां बन गई थीं जिन्होंने अन्य नशों
को अपराध की श्रेणी में डालने के लिए दबाव बनाया
| यह भी कहा
जाता है कि अमेरिका में भांग पर पाबंदी लगाने में प्रसिद्ध मीडिया उद्योगपति
विलियम रैंडॉल्फ हर्स्ट की भी भूमिका थी
| हर्स्ट अख़बार
उद्योग पर अपना एकाधिकार चाहते थे और इसके लिए वे काग़ज़ के उद्योग पर नियंत्रण
चाहते थे
| भांग के रेशों से काग़ज़ बनता था और इससे काग़ज़
उद्योग का केंद्रीकरण और नियंत्रण मुश्किल हो रहा था
|


भारत में कुछ दशकों पहले तक गांजा और
भांग वैध थे
| लेकिन संजय दत्त के नशे के आदी बनने के बाद उनके पिता सुनील दत्त ने नशों
के ख़िलाफ़ ज़ोरदार अभियान चलाया
| सुनील दत्त भले आदमी थे |लेकिन वे भी शराब के अलावा सभी नशों को ख़तरनाक और असभ्य मानने की धारणा
से ग्रस्त थे.
|उनके अभियान के चलते सारे देसी नशे चपेट में
आ गए
|


शराब के पक्ष में सांस्कृतिक
पूर्वग्रह और अन्य नशों के ख़िलाफ़ दुराग्रह से स्थिति ज्यादा ख़राब हुई है
| भांग, गांजा वग़ैरह शराब से ज्यादा नुकसानदेह नहीं हैं यह शोध से लगातार साबित
हुआ है
| दूसरा, जब हम किसी नशे के
पीछे दुराग्रही होकर प्रचार करते हैं तो हम वास्तविकता को विकृत करते हैं
|


जैसे यह बताया जाता है और यह सच भी है
कि तंबाकू से कई बीमारियां होती हैं
| लेकिन हम यह कभी नहीं सुनते कि किसी ने सिगरेट पीकर
किसी का क़त्ल कर दिया या फुटपाथ पर सोये लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी
| अब यह फ़ैसला कैसे हुआ कि कैंसर होना | क़त्ल करने
या सड़क दुर्घटना में लोगों को मारने से ज्यादा बुरा है
शराब दुनिया भर में तमाम सामाजिक समस्याओं , अपराधों
और सड़क दुर्घटनाओं की प्रमुख वजह है
| फिर भी हम शराब का
महिमामंडन करते हैं
|
 इंग्लैंड में नए एक शोध ने
सिर्फ नशों से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का ही नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक
,
शारीरिक, आर्थिक नुक़सान का भी विश्लेषण किया |
उसके नतीजों के मुताबिक शराब हेरोइन के बाद नुक़सान के मामले में
दूसरे नंबर पर है
|











यहां किसी नशे को अच्छा या किसा नशे
को बुरा कहने का आशय नहीं है
| नशे सभी कमोबेश नुक़सानदेह हैं | लेकिन वे मानव
सभ्यता के साथ जुड़े हुए हैं और उन्हें ख़त्म करना शायद मुमकिन नहीं है
| हेरोइन या एक्स्टेसी जैसे रासायनिक नशों पर ज़रूर पाबंदी होनी चाहिए |
लेकिन जो सदियों से प्रचलित नशे हैं उन पर कुछ नियंत्रण करना ही ठीक
नीति हो सकती है
|


शराब के पक्ष में सांस्कृतिक
पूर्वग्रह और अन्य नशों को अपराध घोषित करने के पीछे पश्चिम का वर्चस्ववादी रवैया
रहा है और उससे नुक़सान हुआ है
| शराब को सभ्य समाज का एकमात्र नशा घोषित करने से और उसके महिमामंडन से
शराबखोरी बड़े पैमाने पर बढ़ी है और उन समाजों में भी यह ख़तरनाक हद तक जा पहुंची
है जहां पहले यह समस्या नहीं थी
| शोध यह भी बताते हैं कि
अन्य नशों के मुक़ाबले शराब पीने वालों के ज्यादा ख़तरनाक नशों के आदी होने की
आशंका भी ज्यादा होती है | शराब का प्रचलन अब बहुत युवा पीढ़ी में भी तेजी से बढ़
रहा है और कई नौजवान छोटी उम्र में ही इतनी शराब पी लेते हैं कि उससे ऊब कर ख़तरनाक
नशों की ओर चले जाते हैं |


दुनिया गोल है, इसलिए ऐसा लग रहा है
कि वह चक्कर लगा कर फिर उसी जगह आ रही है





मधपान
निषेद:-






1992
में महिलाओं द्वारा छेड़े गए मद्यपान विरोधी आन्दोलन के कारण,
भारत में आन्ध्र प्रदेश में सभी प्रकार के अल्कोहल की बिक्री तथा
उसे पीना एक अपराध है। इससे पहले
, सरकार ने वरुण वाहिनी
(मद्य की बाढ़) नीति का समर्थन किया था जिसकी वज़ह से अल्कोहल से बने पेय
अरकका ग्रामीण क्षेत्रों
में अत्यधिक बिक्री देखी गई। इस नीति के फलस्वरूप
1991-92 में
मद्य की वज़ह से आबकारी शुल्क का राजस्व राज्य के कुल वार्षिक बजट के
10 प्रतिशत से भी अधिक हो गया। शराब उद्योग द्वारा राजनीतिक दलों को भी गलत
तरीकों से वित्तीय योगदान दिया गया। जबकि सरकार द्वारा लागू रोक पर अभी भी सवाल
खड़े किए जा रहे हैं
| महिलाओं के संघर्ष का राजनीतिक प्रभाव
स्पष्ट है।


यह
संघर्ष तब शुरू हुआ जब महिलाओं के स्वतंत्र समूहों ने अरक को गांव से दूर रखने का
प्रयास किया। अरक से होनेवाले जीवन विनाश की वज़ह से महिलाएं एकजुट हुईं क्योंकि
सरकार द्वारा वित्तपोषित साक्षरता अभियान
, गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाया जा रहा था जिन्होंने
साक्षरता के प्राथमिक पाठों में मद्यपान करने वाले पतियों के हाथों महिलाओं पर
होने वाले ज़ुल्मों का वर्णन शामिल किया। महिलाएं अल्कोहल के विरुद्ध नहीं थी बल्कि
सस्ते पेय की पैकिंग के विरुद्ध जो उसे उन दूरस्थ इलाकों में आसानी से उपलब्ध
बनाता था जहां लोगों को पानी के लिए मीलों चलना पड़ता था। महिलाएं गुस्से में थीं
क्योंकि उनके पति अपनी पूरी आमदनी पीने में खर्च कर रहे थे एवं वे पतियों के
अत्याचारों से तंग आ चुकी थीं। महिलाओं ने उपभोक्ताओं के बजाय अरक के प्रदाताओं
तथा व्यापारियों पर ध्यान केन्द्रित किया
, इसलिए उन्हें कई
पुरुषों का मूक समर्थन हासिल हुआ। महिलाओं ने गतिविधियों को अपने-अपने गांव तक
सीमित रखा तथा गैर सरकारी संगठनों का समर्थन हासिल किया
, हालांकि
इस संघर्ष का नेतृत्व स्थानीय महिलाओं द्वारा ही किया गया।


अब
यह संघर्ष गरीब
, ग्रामीण महिलाओं से मध्यम वर्ग की शहरी महिलाओं तथा पुरुषों तक आ गया है
जो गान्धीवादी आदर्शों में विश्वास करते हैं तथा शराब की पूर्ण रोक की मांग करते
हैं। गांवों की महिलाएं चाहे राज्य-व्यापी सम्पूर्ण रोक के परिणामों के नतीज़ों का
सामना कर पाएं या नहीं
, लेकिन उन्होंने अवश्य राजनीतिक शक्ति
की बुनियादें हिलाने में कामयाबी हासिल की है।














मद्यपान रोकने के दस उपाय:-




21 दिनों के अन्दर अल्कोहल पीना छोड़ें



(1) अपने लक्ष्य निर्धारित
करें। कम पीने की इच्छा के लिए आपके क्या व्यक्तिगत कारण हैं
? अपने विचार लिखें एवं इसे कोई लक्ष्य निर्धारित करने के लिए मार्गदर्शक
बनाएं। चाहे यह पीने की अवसरों से दूर रहना हो
, नियंत्रित
रूप से पीने में हिस्सेदारी
, या पूर्ण रूप से पीना बन्द करना,
यह सुनिश्चित करें कि आपको मालूम हो कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं तथा
यह सुनिश्चित करें कि कारण आपके लिए है
, न कि किसी और के लिए,
अन्यथा आप सफल नहीं होंगे।


(2) पीना कम करने के लिए
अगले हफ्ते का कोई दिन चुनें। वह दिन चुनें जब आप आराम की स्थिति में तथा
तनावमुक्त हों। ऐसे एक दिन की योजना बनाएं जब अल्कोहल से दूर रहना आसान हो।


(3) हार नहीं मानें। इस
लेख में हमने यह कहीं नहीं लिखा है कि पीना छोड़ देना आसान होगा! अपने लक्ष्य अपने
उन कारणों के साथ दिमाग में रखें जिनके बलपर आपने यह लक्ष्य निर्धारित किए। यदि आप
एक दिन अधिक पी लें तो उसे अपने लक्ष्य को बिगाड़ने का कारण न बनने दें। अगले दिन
फिर सही रास्ते पर आ जाएं। जब आप स्वयं को असफल करें तो केवल रॉबर्ट एफ. कैनेडी की
यह उक्ति याद करें
आप सफल होंगे यदि आप वास्तव में अपनी
पीने की आदत को नियंत्रण में लाना चाहते हों या पीना पूर्ण रूप से छोड़ना चाहते
हों।


(4) अपनी योजना को दूसरों
के साथ बांटें। अपनी योजना के बारे में परिवार के सदस्यों एवं विश्वस्त मित्रों के
साथ बात करें। उन्हें मालूम होने दें कि वे सफल होने में आपकी किस तरह मदद कर सकते
हैं।


(5) अपने परिवार एवं
मित्रों से मदद के लिए कहें। जो वास्तव में आपके परिवर्तन में मदद करना चाहते हों
वे पूरे समय आपकी मदद करके प्रसन्न होंगे। स्पष्टरूप से अपनी चिंताएं बताएं।


(6) आराम करें। अल्कोहल
लेना कम करने के आपके प्रयास के कड़ी में हफ्ते में एक दिन ऐसा रखें जब आप अल्कोहल
नहीं पिएंगे। एक बार यह एक दिन आसानी से निकल जाए
, उसे दो
दिन करें
, फिर तीन दिन, फिर एक हफ्ता।
आपके बड़े लक्ष्य को छोटे लक्ष्यों में बांटना किसी संकल्प से कम नहीं है। उल्टे
,
यह आपको वास्तव में आपके लक्ष्य की ओर लम्बे समय तक बने रहने में
मदद करेगा।




(7) यह मालूम करें कि आपके पीने की सम्भावना सबसे अधिक कब है
तथा उससे बचने का प्रयास करें। जब घर पर या पार्टियों में हों तो अपनी योजना पर
बने रहने के लिए अल्कोहल के बजाय कोई और पेय पदार्थ पीना चाहिए। आप अपनी पीने की
आदत को किसी रचनात्मक शौक से भी स्थानापन्न कर सकते हैं
, जो
कि रचनात्मक हो जैसे व्यायाम करना
, पढ़ना, पेंटिंग करना या अन्य बातें।


(8) लालच से दूर रहें। आपको पीने की इच्छा कब होती है? वह
पार्टियां हैं या जब आप अकेले होते हैं
? यह सुनिश्चित करें
कि आपके लालच क्या हैं एवं उसके बाद उनसे बचने के लिए सरल योजनाएं बनाएं। शराब की
जगह कोई अन्य पेय पदार्थ लें तथा घर पर भी यही करें। अन्यथा
, अपनी पीने की आदत को अन्य रचनात्मक शौकों से बदलें जैसे व्यायाम करना,
पढ़ना, पेंटिंग करना या अन्य बातें जिसमें
आपको आनन्द मिलता हो।


(9) स्वयं को इनाम दें। जो
पैसा आप पहले पीने पर खर्च कर रहे थे
, उससे अपने परिवार या
मित्रों के साथ कुछ मज़ेदार बातें करें। बाहर खाने जाएं
, मूवी
देखें
, या खेल खेलें।




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कुरीति

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